साकेत न्यूज काशी मिश्रा
अम्बेडकर नगर जिले के ऐतिहासिक टाण्डा हनुमान गढ़ी घाट समेत नदियों पर जिले भर में पितरों को आस्था पूर्वक दर्पण कल से किया जायेगा। वही प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश कुमार मिश्रा ने बताया पितृ पक्ष के पहले दिन चंद्र ग्रहण भी लग रहा है. लेकिन ग्रहण का पितृ पक्ष पर कोई प्रभाव पड़ेगा.उससे पूर्व पितरों को तर्पण नहीं कर सकते हैं और ब्राह्मणों को भोजन भी नहीं करा सकते हैं. श्राद्ध पक्ष का समापन 21 सितम्बर को सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या के साथ होगा.
सनातन धर्म में श्राद्ध पक्ष का विशेष धार्मिक महत्व माना जाता है. श्राद्ध शब्द ‘श्रद्धा’ से बना है, जिसका मतलब है पितरों के प्रति हमारी श्रद्धा भाव. हमारे अंदर प्रवाहित रक्त में हमारे पितरों के अंश हैं, जिसके कारण हम उनके ऋणी होते हैं और यही ऋण उतारने के लिए श्राद्ध कर्म किये जाने का विधान बताया गया है. पौराणिक मान्यता के मुताबिक पितृपक्ष में किये गए श्राद्ध-तर्पण, पिंडदान इत्यादि कार्यों से पूर्वजों की आत्मा को तो शांति प्राप्त होती ही है, साथ ही कर्ता को भी पितृ ऋण से मुक्ति मिल जाती है. विद्वान बताते हैं श्राद्ध या तर्पण करने से अनुरूप फल प्राप्त होते हैं. इसके अलावा रोहिणी मुहूर्त श्राद्ध कर्म के लिए सबसे शुभ माने जाते हैं. श्राद्ध करने के लिए किसी योग्य ब्राह्मण को घर पर बुलाकर मंत्रों का उच्चारण करें और पूजा के बाद जल से तर्पण करें. इसके बाद गाय, कुत्ते और कौवे के लिए भोजन निकालें. इन जीवों को भोजन देते समय अपने पितरों का स्मरण जरूर करें.
देवलोक से धरती पर आते पूर्वज :प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश कुमार मिश्रा ने बताया सनातन धर्म में पितृपक्ष को कनागत भी कहा जाता है. राजा कर्ण ने कनागत की शुरुआत की थी. द्वापर युग से पितृपक्ष की परंपरा चली जा रही है. पितृ पक्ष की शुरुआत होते ही देवलोक से पूर्वज धरती पर आ जाते हैं. जिनको आस्था पूर्वक तर्पण किया जाता है. पितरों के आशीर्वाद से परिवार में सुख समृद्धि एवं वैभव बना रहता है।