साकेत न्यूज संवाददाता अम्बेडकर नगर
अम्बेडकरनगर, टांडा जनपद के विकास खंड टांडा अंतर्गत ग्रामसभा नेपुरा जलालपुर की रहने वाली सिंदू, एक ऐसी विधवा महिला है जो अपने 14 वर्षीय बेटे को लेकर बीते दो वर्षों से न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रही है। सिंदू का विवाह हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार रामगरीब नामक युवक से हुआ था, लेकिन पति की संदिग्ध हालात में मौत के बाद न सिर्फ उसका संसार उजड़ गया, बल्कि अब उसका अस्तित्व भी सवालों के घेरे में है। सिंदू का आरोप है कि रामगरीब की नाजायज पत्नी और गांव के एक दबंग व्यक्ति की साजिश में उसके पति की शराब में ज़हर मिलाकर हत्या कर दी गई, और जब शव को केले के पत्तों पर रखकर अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जा रहा था, तब उसने साहस दिखाते हुए डायल 112 पर सूचना देकर पुलिस को मौके पर बुलाया और शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजवाया। लेकिन इसके बाद भी न सिर्फ पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कथित हेराफेरी की गई बल्कि बिसरा रिपोर्ट भी आज तक उसे नहीं सौंपी गई और उसकी तहरीर के बावजूद एफआईआर तक दर्ज नहीं की गई, पुलिस ने केवल बिसरा रिपोर्ट आने की बात कहकर उसे टाल दिया।
सिंदू का यह भी आरोप है कि विकास खंड टांडा के सचिव अमरपाल शर्मा और एडीओ पंचायत गांव के उसी दबंग व्यक्ति और रामगरीब की तथाकथित दूसरी पत्नी सुरेखा से मिले हुए हैं, जो उसकी ससुराल की सम्पत्ति पर जबरन कब्जा कर बैठी है और खुद को पत्नी बताकर सरकारी योजनाओं और संपत्तियों पर अपना दावा ठोक रही है। सिंदू का कहना है कि इसी मिलीभगत के कारण दो बार पंचायत भवन में आयोजित बैठकों (27 मई और 23 जून 2025) में भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया – पहली बैठक कोरम के अभाव में रद्द कर दी गई और दूसरी में विपक्षी पक्ष अनुपस्थित रहा।
इतना ही नहीं, सिंदू का कहना है कि सुरेखा ने उसे मारा पीटा और जान से मारने की कोशिश भी की, जिससे वह किसी तरह जान बचाकर भाग निकली और थाना इब्राहिमपुर में एफआईआर दर्ज कराई, लेकिन आरोपी को आज तक गिरफ्तार नहीं किया गया। 116 का वाद नायब तहसीलदार टांडा के यहां लंबित है और 145 की फाइल, जो थाना इब्राहिमपुर से तीन बार सीओ कार्यालय होते हुए एसडीएम कोर्ट भेजी गई, हर बार एसडीएम के पेशकार द्वारा ‘कमी’ बताकर लौटा दी जाती है, जिससे दो वर्षों से मुकदमे का ट्रायल तक शुरू नहीं हो पाया। सिंदू का सीधा आरोप है कि अधिकारियों और विपक्षी पक्ष की मिलीभगत के चलते हर स्तर पर उसे न्याय से वंचित किया जा रहा है।
अब 8 जुलाई को पंचायत भवन में होने वाली अगली बैठक पर सबकी निगाहें टिकी हैं कि क्या सिंदू को दो साल बाद कोई राहत मिलेगी या फिर यह तारीख भी बाकी तारीखों की तरह सिर्फ तारीख बनकर रह जाएगी। सिंदू का कहना है कि वह अपने बेटे के भविष्य के लिए लड़ रही है, लेकिन जिन अधिकारियों पर भरोसा था वही लोग बार-बार तारीखें टालकर उसे मानसिक और सामाजिक रूप से प्रताड़ित कर रहे हैं। वह बार-बार अधिकारियों के कार्यालय का चक्कर लगाते-लगाते थक चुकी है, लेकिन अब भी उसे इंसाफ की उम्मीद है।
यह विडंबना ही है कि जहां एक तरफ उत्तर प्रदेश सरकार जीरो टॉलरेंस की नीति की बात कर रही है, वहीं जमीनी हकीकत यह है कि एक विधवा महिला को दो साल बाद भी इंसाफ नहीं मिल सका। सिंदू की पीड़ा, एक आम महिला की उस मजबूरी को दर्शाती है, जहां सच को दबाया जाता है और झूठ को सिस्टम का संरक्षण मिल जाता है। ‘देश वार्ता’ प्रशासन से अपील करता है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच कर दोषियों को सज़ा दी जाए और सिंदू व उसके बेटे को न्याय देकर उनके जीवन को फिर से पटरी पर लाने में मदद की जाए।