साकेत न्यूज संवाददाता अम्बेडकर नगर
टांडा के राजकीय बालिका विद्यालय से आई तस्वीर ने खोली व्यवस्था की पोल
अंबेडकर नगर —”कलम पकड़ना था, झाड़ू थमा दी गई… सपने संजोने थे, ज़मीन पर उतार दिए गए ये पंक्तियाँ अब किसी कविता की कल्पना नहीं, बल्कि टांडा के राजकीय बालिका विद्यालय की सच्चाई बयां कर रही हैं।
जहाँ एक ओर बच्चियाँ जी-जान लगाकर अपने भविष्य को सँवारने की कोशिश कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर वे विद्यालय में पढ़ाई के बजाए सफाई कर्मियों की भूमिका निभा रही हैं। शिक्षा विभाग की नाक के नीचे ये तमाशा चलता रहा, और जिम्मेदार लोग चुप्पी की चादर ओढ़े बैठे रहे।
ताली दो हाथ से बजती है — एक मेहनत का, दूसरा उपेक्षा का
विद्यालय में शिक्षकगण जहाँ दिशा देने का दावा कर रहे हैं, वहीं कई मौकों पर वही शिक्षक बच्चों को झाड़ू थमाकर कक्षा से बाहर करते देखे गए। यह घटनाक्रम शिक्षा के अधिकार और बाल सुरक्षा कानूनों की सीधी अवहेलना है।

पांच बड़े सवाल, जो शिक्षा विभाग के दरवाज़े पर दस्तक दे रहे हैं:
- क्या स्कूलों में बच्चों को शिक्षा देने की बजाय अब सफाई का प्रशिक्षण दिया जाएगा?
- क्यों बच्चों से श्रम करवाने पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया?
- क्या शिक्षा विभाग की “साइलेंट पॉलिसी” अब ऐसे मामलों में भी लागू है?
- क्या बच्चियों के आत्म-सम्मान और अधिकार की जिम्मेदारी कोई नहीं लेगा?
- और सबसे बड़ा सवाल — जिम्मेदार कौन?
शासन की नीति और जमीनी हकीकत में जमीन-आसमान का फर्क
सरकार भले ही नई शिक्षा नीति, डिजिटल क्लास और स्मार्ट लर्निंग की बात करती हो, लेकिन ज़मीनी हकीकत में ‘स्मार्ट क्लास’ की जगह ‘झाड़ू क्लास’ का बोलबाला है। शिक्षकों की निगरानी की बात करने वाला विभाग खुद आंखें मूंदे बैठा है।
जनता का कहना है हमारे बच्चों की कलम से झाड़ू मत लड़वाइए, वरना सवालों की झाड़ू से कुर्सी साफ हो जाएगी!”
जनता की मांग — हो उच्चस्तरीय जांच और दोषियों पर कार्रवाई
जनता इस मामले में शासन-प्रशासन से अपील करता है कि संज्ञान लेकर तत्काल जांच कराई जाए और यदि कोई जिम्मेदार पाया जाए तो उस पर कठोर दंडात्मक कार्रवाई की जाए।