साकेत न्यूज संवाददाता अम्बेडकर नगर
सफाई कर्मी कर रहे कार्यालयों में कार्य
अंबेडकरनगर स्वच्छ भारत मिशन का ढोल गांव-गांव बज रहा है, लेकिन ताल कहीं-कहीं बेसुरी सी लग रही है। जिले की करीब संबद्ध 300 सफाई कर्मियों की सेना तैनात है, जिनका काम है गलियों को चमकाना, नालियों को बहाना और गांवों को कचरा मुक्त बनाना। लेकिन जमीनी हकीकत पूछ लीजिए तो गंदगी देखकर ही अंदाज़ा हो जाएगा कि “स्वच्छता अभियान” आखिर किस मोड़ पर खड़ा है।
नियुक्ति हुई, कार्य शुरू… लेकिन कहाँ?
कागज़ी दस्तावेजों में हर ग्राम सभा में एक-दो कर्मी तैनात हैं। ये सुबह झाड़ू लेकर निकलते हैं, कचरा इकट्ठा करते हैं और डंपिंग स्थल तक पहुंचाते हैं। कुछ जगहों पर तो कूड़े के वाहन भी हफ्ते-दो हफ्ते में दिखाई दे जाते हैं। इतना ही नहीं, कचरे को जैविक-अजैविक में अलग करने और खाद बनाने का दावा भी खूब गाया जाता है।लेकिन सच पूछिए तो कई गांवों में कूड़ा वहीँ पड़ा सड़ रहा है, और सफाई कर्मी “नियमित” रूप से नदारद रहते हैं। कटेहरी ब्लॉक जैसे इलाकों में तो हाल यह है कि गंदगी और मच्छरों ने मिलकर “स्वच्छ भारत” का मज़ाक बना दिया है। ग्रामीण भी अब सवाल करने लगे हैं – आखिर सफाई कर्मी आते कब हैं?नाम न छापने की शर्त पर सफाई कर्मियों की शिकायत है कि उन्हें न तो पर्याप्त साधन दिए जाते हैं, न समय पर वेतन। नतीजा यह कि जहां झाड़ू टूट गई, वहां सफाई का सिस्टम भी बैठ गया।
जब मीडिया कर्मी ने ज़िले के डीपीआरओ से फोन पर बात कर सफाई व्यवस्था की हकीकत जाननी चाही, तो फोन बार-बार मिलाया गया लेकिन रिसीव नहीं हुआ। लगता है जनाब भी सफाई की तरह “गायब” ही हो गए हैं।
कुल मिलाकर, कागज़ों में गांव चमचमा रहे हैं, लेकिन ज़मीन पर गली-मोहल्लों की हालत देखकर यही कहा जा सकता है –”सफाई कर्मी हों या अफसर, सबकी ड्यूटी फ़िलहाल डंपिंग ग्राउंड पर ही पड़ी नज़र आ रही है!”



